ADDA ANALYSIS: हरदा-आर्य की जुगलबंदी भाजपा पर पड़ न जाए भारी! शंखनाद रैली में यशपाल आर्य ने दिखाया दम, मंच पर नेता एकजुट सामने बड़ी भीड़, क्या भाजपा ने आर्य को कमतर आंक बड़ी सियासी चूक की?

हल्द्वानी/देहरादून: पहले देहरादून में कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में भाजपा से घर वापसी के बाद पहुँचे यशपाल आर्य के वेलकम में मंच पर हरदा से प्रीतम हर नेता मौजूद रहा तो गुरुवार को हल्द्वानी में भी मंच पर यही नजारा दिखा तो सामने भारी भीड़ ने कांग्रेसियों के चेहरे खिला दिए। हल्द्वानी के रामलीला मैदान में तो आलम यह रहा कि सैंकड़ों कांग्रेसी मंच पर लकदक नजर आए, धक्का-मुक्की के नज़ारे भले अनुशासनहीनता या मंच प्रबंधन व्यवस्था पर सवाल खड़े करें लेकिन नेता-कार्यकर्ता का ऐसा जोश यह भी इशारा करता है कि कांग्रेस पार्टी पुरानी रंगत में लौट रही। अरसे बाद कांग्रेस ने ऐसी भीड़ जुटाई और वह भी कुमाऊं में जहां भाजपा का पूरा फोकस है और खुद मुख्यमंत्री एक दिन पहले बड़ा कार्यक्रम करके गए, वहाँ काग्रेस ने खुद को इक्कीस साबित करने का दा़ंव खेला तो इसका श्रेय यशपाल आर्य को तो जाता ही है, मंच पर देवेंद्र यादव के साथ हरीश रावत, प्रीतम सिंह, गणेश गोदियाल, गोविंद सिंह कुंजवाल, करन माहरा, रणजीत रावत, भुवन कापड़ी, सुमित ह्रदयेश से लेकर तमाम कुमाऊं के दिग्गज एक मंच पर नजर आए।


जाहिर है अपने स्वागत-अभिनंदन कार्यक्रम के जरिए आर्य पिता पुत्र ने कांग्रेस में अपनी घर वापसी को पार्टी के लिए सियासी नफ़े का सौदा साबित करने की कोशिश की ही, साथ ही यशपाल आर्य के कांग्रेस में आने से दलित वोटों के लामबंद होने का मैसेज देकर भाजपा रणनीतिकारों के पेशानी पर बल डाल दिया है। कहीं न कहीं कुमाऊं से लेकर देहरादून तक यही सवाल किया जा रहा कि क्या भाजपा ने दलित चेहरे आर्य को तवज्जो न दे साइडलाइन कर राजनीतिक भूल की जिसका फायदा अब कांग्रेस उठाएगी? दरअसल यह सवाल इसलिए ज्यादा मौजूं हो गया है क्योंकि आर्य के जरिये हरदा न केवल कुमाऊं के दलित वोटबैंक को फिर से अपने पाले में लामबंद करना चाह कहे बल्कि तराई भाबर से लेकर हरिद्वार तक ठाकुर-ब्राह्मण के बाद सूबे के तीसरे सबसे बड़े वोटबैंक को साध लेना चाह रहे हैं।


जिस तरह से हरीश रावत और यशपाल आर्य की जुगलबंदी दिखने लगी है और मंच पर कांग्रेसी एकजुटता को लेकर आर्य सेतु बनने की कोशिश कर रहे उसका सियासी ख़ामियाज़ा भाजपा को उठाना पड़ सकता है। भले कुमाऊं में सांसद अजय टम्टा से लेकर वरिष्ठ विधायक चंदनराम दास या कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य हो लेकिन मौजूदा वक्त में यशपाल आर्य के मुकाबले का दलित चेहरा भाजपा में कोई नजर नहीं आ रहा। हरीश रावत भी भले अतीत में यशपाल आर्य की टक्कर में सांसद प्रदीप टम्टा को खड़ा करने की कोशिश करते रहे हों लेकिन 2022 बैटल में उतरने से पहले वे भी बखूबी जान चुके कि कांग्रेस के परम्परागत दलित वोट को अगर पंजे के पक्ष में कोई खड़ा करने में सबसे ज्यादा मददगार साबित हो सकता है तो वह आर्य ही हैं।


ऐसे में हल्द्वानी में कांग्रेस की विजय संकल्प शंखनाद रैली में उमड़ी भीड़ और मंच पर दिखी कांग्रेसी एकजुटता सत्ताधारी भाजपा के लिए बड़ी चिन्ता का सबब हो सकती है। वैसे भाजपा से निकलकर कांग्रेस में घर वापसी करते ही पार्टी के मंच पर यशपाल आर्य की बढ़ती चमक देखकर कांग्रेसी गोत्र के धामी कैबिनेट के मंत्री डॉ हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज के मन में क्या चल रहा होगा, अवश्य ही यह प्रश्न कई लोगों के ज़ेहन में तैर रहा होगा!

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TNA

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