ADDA IN-DEPTH कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की पहली बैठक: कहीं जिताऊ दावेदार नहीं, कहीं ‘एक अनार सौ बीमार’ वाले हाल, बाइस में इक्कीस साबित होने को महामंथन शुरू

देहरादून: पहाड़ पॉलिटिक्स में 2022 का दंगल फतह करने निकली कांग्रेस अब जिताऊ उम्मीदवारों पर मंथन शुरू कर चुकी है। बुधवार को देहरादून में पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी की पहली बैठक हुई जिसमें जिताऊ उम्मीदवारों की खोज का अभियान शुरू हो गया। बैठक में स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडेय के साथ बतौर सदस्य डॉ अजॉय कुमार और बिरेन्द्र सिंह राठौर के अलावा प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव, प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, पूर्व सीएम हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, सह प्रभारी राजेश धर्माणी और दीपिका सिंह पांडेय शामिल हुई।

तय माना जा रहा है कि कांग्रेस में सिटिंग विधायकों के टिकट पक्के हैं। वैसे भी कांग्रेस में सिटिंग गेटिंग का फ़ॉर्मूला पहले से चलता आया है और 2017 के संग्राम पूरी तरह ध्वस्त हुई कांग्रेस में बचे नौ विधायकों में किसी का टिकट काटा जाना असंभव जैसा ही है। यानी प्रीतम सिंह, करन माहरा, गोविंद सिंह कुंजवाल, क़ाज़ी निज़ामुद्दीन, फुरकान अहमद, ममता राकेश, हरीश धामी, आदेश चौहान और मनोज रावत को फिर से उनकी सीटों से आज़माया जाएगा।

पार्टी की असल चुनौती दोहरी है, एक, बाकी बची सीटों पर दावेदारों की भीड़ से जिताऊ चेहरे खोजने को लेकर है, तो दूसरी चुनौती, भाजपा के मजबूत किले ढहाने की है। बाइस बैटल में कांग्रेस को हल्द्वानी में डॉ इंदिरा ह्रदयेश के जाने से खाली हुई जगह भरनी है। भले पार्टी के पास हल्द्वानी में एक नाम इंदिरा पुत्र सुमित ह्रदयेश का है लेकिन अगली पीढ़ी को आगे करते पार्टी को कई ‘इफ़ एंड बट’ का सामना करना पड़ेगा। कर्णप्रयाग में दिवंगत अनुसूया प्रसाद मैखुरी के बाद जिताऊ नया चेहरा कौन होंगे यह प्रश्न खड़ा है। हरिद्वार बीएचईएल रानीपुर में बाइस में कांग्रेस के पास अम्बरीश कुमार नहीं रहे हैं। रुड़की में सुरेश जैन, खानपुर में चौधरी यशवीर सिंह और पुरोला से भाजपा में चले गए राजकुमार की भरपाई करनी है। सत्रह में हरीश रावत किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण सीटों से हारे थे अब बाइस में यहां जिताऊ उम्मीदवार खोजने की चुनौती बरक़रार है।

कांग्रेस के सामने एक चुनौती भाजपा के मजबूत किले ढहाने को लेकर भी खड़ी है। हरिद्वार शहर में मदन कौशिक, देहरादून कैंट में हरबंस कपूर, डीडीहाट में बिशन सिंह चुफाल, मसूरी में गणेश जोशी, रायपुर में उमेश शर्मा काऊ, ऋषिकेश में प्रेमचंद अग्रवाल, बागेश्वर में चंदनराम दास और गदरपुर, रुद्रपुर, काशीपुर जैसे मजबूत किले ढहाने को लेकर कांग्रेस और हरीश रावत नई रणनीति बनाने की कसरत कर रहे हैं।

कांग्रेस के लिए कठिन परीक्षा यह भी रहेगी कि जिन सीटों पर इस बार उसके जीतने के चांस ज्यादा हैं यानी पार्टी जहां खुद को मजबूत मान रही है, वहां ‘एक अनार और सौ बीमार’ की तर्ज पर टिकट के दावेदारों में जिताऊ उम्मीदवार खोजने और टिकट की दौड़ में पिछड़ने वालों की नाराजगी भितरघात बनकर नुकसान न पहुँचाए। आखिर कांग्रेस में यह कहावत खूब चर्चित रहती है कि ‘कांग्रेस को कांग्रेसी ही हराते हैं’ यानी गुटबाजी और भितरघात से बचना कठिन चुनौती होगा। जैसे देहरादून जिले की सहसपुर सीट पर आर्येन्द्र शर्मा बनाम अनेक दावेदार दिख रहे हैं, तो हल्द्वानी में भले सुमित ह्रदयेश की दावेदारी सबसे मजबूत हो लेकिन कई और दावेदार सामने हैं। रणजीत रावत की रामनगर सीट पर भी दावेदार कम नहीं हो रहे। ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार की सीटों का भी यही हाल है। यानी जिन सीटों पर कांग्रेस खुद को मजबूत आंक रही वहां टिकट को लेकर ही दावेदारों में पहले कलह कुरुक्षेत्र होना है जिसके भितरघात में तब्दील होने की आशंका सदा बनी रहती है।


जाहिर है ऐसे हालात का असल अंदाज पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट से भी स्क्रीनिंग कमेटी को बखूबी हो जाएगा।

दरअसल, 2014 से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक उत्तराखंड में लड़ी गई तीन चुनावी लड़ाइयों में कांग्रेस को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। लगातार दो बार राष्ट्रीय चुनाव हुए तो उतराखंड की पांचों सीटों पर कांग्रेस को हार नसीब हुई और 2017 में मोदी सूनामी में हरीश रावत का तब मजबूत दिख रहा किला ताश के पत्तों की तरह ढह गया था। लिहाजा 2022 की चुनावी लड़ाई में कांग्रेस अपने इसी सबसे बुरे दौर से उबर कर भाजपा पर खुद को इक्कीस साबित करने को लेकर छटपटाहट महसूस कर रही है।

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