ADDA ANALYSIS सुबोध राकेश की बसपा में घर वापसी कमल कुनबे को झटका, तो पंजे के पराक्रमियोें के भी छुड़ा गया पसीने, भाजपा-कांग्रेस में टूट से ताक़तवर चेहरे पाने की AAP की चाहत अधूरी

हरिद्वार/देहरादून: एक जमाने में हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में अपने दमखम के जरिए उत्तराखंड विधानसभा में 8 विधायक भेजने वाली बहुजन समाज पार्टी 2017 के चुनाव में शून्य पर पहुंच गई। लेकिन अब 2022 का चुनाव सामने है तो मायावती का हाथी फिर पहाड़ चढ़ने को आतुर है और जब अभी तक 22 बैटल में कोई खास तरह की चुनावी लहर नहीं दिख रही तब बसपा भी भाजपा-कांग्रेस से लोहा लेकर कुछ सीटों पर जीत का सपना बुनने में लगी हुई है। बसपा सुप्रीमो मायावती की नजर उन सीटों पर तो है ही जहां दलित वोटर निर्णायक भूमिका में है बल्कि उन भाजपा-कांग्रेस के मजबूत चेहरों पर भी है जिनको या तो पार्टी टिकट नहीं दे पा रही जिनके टिकट काट दिए जाएंगे। साथ ही वह चेहरे भी जिनको लगता है कि मौजूदा सियासी हालात में भाजपा या कांग्रेस से जीत पक्की होती नहीं दिख रही लेकिन अगर बसपा का वोटबैंक अपने वोटबैंक से जोड़ दिया जाए तो विधासनभा पहुँचने का रास्ता बन सकता है।


इसी रणनीति के चलते बसपा ने पहला विकेट चटकाया है सत्ताधारी भाजपा का। भगवानपुर सुरक्षित सीट से 2017 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय सुरेन्द्र राकेश के छोटे भाई सुबोध राकेश अपनी भाभी और कांग्रेस प्रत्याशी ममता राकेश से महज 2513 वोटों से शिकस्त खा गए थे। 2022 में भी भाजपा सुबोध राकेश पर दांव लगाने की तैयारी में थी और उनकी माँ सहती देवी ने भाजपा के टिकट पर ही नगर पंचायत का चुनाव लड़ा भी और जीता। खुद सुबोध राकेश नगर पंचायत अध्यक्ष के प्रतिनिधि के तौर पर सारा कामकाज देख भी रहे थे और भाजपा संगठन की चुनावी तैयारियों में लगे दिखते थे। लेकिन अंदर ही अंदर भगवानपुर के सियासी समीकरणों में 2022 में भी खुद को भाजपा में रहते अपनी भाभी ममता राकेश के मुकाबले मजबूत न पाकर सुबोध राकेश ने बसपा में घर वापसी कर ली।

बसपा में जाने को घर वापसी करार देते सुबोध राकेश ने कहा कि वे अपने भाई स्वर्गीय सुरेन्द्र राकेश के सपनों को साकार करने के लिए बसपा में आए हैं। बसपा को अपना असली घर बता रहे सुबोध राकेश दरअसल जान चुके थे कि भगवानपुर की लड़ाई में कामयाबी के लिए भाजपा नहीं बल्कि उनके अपने बड़े भाई के रास्ते चलना होगा। ज्ञात हो कि स्वर्गीय सुरेन्द्र राकेश 2007 और 2012 यानी लगातार दो विधानसभा चुनाव बसपा के टिकट पर भगवानपुर से जीते थे और उनकी जाने के बाद उनकी पत्नी ममता राकेश ने पहले उपचुनाव और फिर 2017 का विधासनभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीता। जाहिर है 2017 में मोदी सूनामी के बावजूद भगवानपुर की जंग हारे सुबोध राकेश समझ चुके हैं कि अगर दलित-मुस्लिम वोटों का समीकरण बिठाकर जीत का सपना देखना है तो लौटना बसपा में ही होगा।


ऐसे में ठीक चुनाव से पहले सुबोध राकेश का पार्टी छोड़कर बसपा में जाना सत्ताधारी भाजपा के लिए तो तगड़ा झटका है ही, विपक्षी कांग्रेस के लिए भी अब पसीना-पसीना होने का संकेत है। क्योंकि अगर सुरेंद्र राकेश का फ़ॉर्मूला सुबोध राकेश के पक्ष में भी फिट बैठ गया तो ममता राकेश को सीट बचाने के लिए कड़ी मशक़्क़त करनी पड़ सकती है।वैसे भी हरिद्वार जिले की 11 में से 3 सीट ही 2017 में उसके हिस्से आई थी और 2022 में पंजे को किसान आंदोलन के चलते इस क्षेत्र से बड़ी उम्मीदें हैं।
बहरहाल, चुपके से ही सही बसपा ने एक ही तीर से भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही परेशान कर दिया है।

वैसे चिन्ता का विषय आम आदमी पार्टी के लिए भी है, जो भाजपा-कांग्रेस की बारी-बारी भागीदारी के विकल्प के तौर पर खुद को पेश कर रही है लेकिन भाजपा या कांग्रेस छोड़ते अपने क्षेत्र के मजबूत चेहरों का AAP के दरवाजे दस्तक न देकर बसपा को ही तीसरी ताकत मानना केजरीवाल के पहाड़ पॉलिटिक्स में दम दिखाने के दावों के लिए झटका ही है। कुंभनगरी में चर्चा तो यहां तक भी है कि एकाध विधायक और है जो लखनऊ-दिल्ली दौड़ रहा ताकि हाथी का साथी बनकर विधानसभा फिर पहुँचा जा सके!

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TNA

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