ADDA IN-DEPTH इंदिरा ह्रदयेश अब हैं नहीं बहुगुणा के बाद किशोर भी गए तो कांग्रेस ब्राह्मण चेहरा ‘मुक्त’ हो जाएगी!

देहरादून: पहाड़ पॉलिटिक्स में आज का सबसे बड़ा हल्ला इस बात को लेकर है कि क्या पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कांग्रेस में रहेंगे या फिर परेड मैदान में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंचासीन होंगे तब, पूर्व PM स्वर्गीय राजीव गांधी के करीबी रहे किशोर उपाध्याय कमल कुनबे के रंग में रंगते नजर आएंगे। हालांकि राजनीति में जब तक कोई घटना घटित न हो जाए तब तक तमाम समीकरण बिठाने की जुगत में लगे नेता और दल ऐसी अटकलबाजियों को क़यास और अफ़वाह ही करार देते हैं। किशोर उपाध्याय और भाजपा से लेकर कांग्रेस भी फिलवक्त यही कहती सुनाई दे रही लेकिन इसी सियासी हल्ले के पीछे यह साफ़ साफ नजर आ रहा कि प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व और किशोर उपाध्याय में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है।


यहां तक कि किशोर उपाध्याय को दर्द यह भी है कि 2017 के सियासी संग्राम में हार के बाद उनको अध्यक्ष पद से हटा दिया जाता है लेकिन आज जब फिर चुनावी संग्राम छिड़ा है तो तब की हार के दूसरे ज़िम्मेदार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को कांग्रेस कैंपेन कमांडर बनाकर मैदान में उतार दिया गया है और इंदिरा के निधन से बनी पार्टी की राजनीतिक तस्वीर में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर नए अध्यक्ष के रूप में उनसे जूनियर गणेश गोदियाल को तवज्जो दे दी गई और वे देखते रह गए। यानी हरीश रावत और प्रदेश नेतृत्व से तो किशोर की सियासी पटरी बैठ ही नहीं रही कांग्रेस नेतृत्व और राहुल गांधी के साथ भी रिश्तों में बर्फ जमती दिख रही है।

सवाल है कि क्या दिनेश धैने की चाहत में हरीश रावत की अपने पुराने साथी किशोर उपाध्याय के साथ तल्ख़ी बढ़ती चली
गई? या टिहरी को लेकर अगर भाजपा अपने सीटिंग विधायक धन सिंह नेगी की बाइस बैटल में जीत को लेकर आश्वस्त नहीं तो क्या कांग्रेस और हरीश रावत भी किशोर को धैने के मुकाबले कमजोर आंक रहे? क्या सहसपुर की हार और आर्येन्द्र शर्मा के बागी होकर भी आज कांग्रेस के ख़ज़ांची बन बैठने से किशोर को कांग्रेस में किनारे हो लेने का संदेश मिल गया जिसने भाजपा से गलबईया करने को विवश कर दिया? ये तमाम सवाल तब तक उत्तर का इंतजार करते रहेंगे जब तक मोदी के मेगा शो का मंच नहीं सज जाता है।

वैसे किशोर उपाध्याय ने द न्यूज अड्डा से बातचीत में कहा कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मान-मनौव्वल को फ़ोन किया है बीती रात्रि को लेकिन क्या इतने भर से किशोर मान जाएंगे? ये आज दिख जाएगा।

बहरहाल किशोर के जाने से भले काग्रेस के कर्ताधर्ता यह मान रहे हों कि टिहरी में उसको बहुत बड़ा झटका नहीं लगेगा, उलटे दिनेश धैने को कांग्रेस में लाने का रास्ता और आसान हो जाएगा। लेकिन सियासत में कभी भी एक जमा एक दो ही नहीं होते बल्कि 11 भी हो जाते हैं और प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इस खेल को बखूबी खेलना जानते हैं।

किशोर एक जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से जुड़े रहे और वे खुद गांधी परिवार से अपने करीबी पारिवारिक रिश्तों की दुहाई देते रहे हैं लेकिन अब अगर किशोर कांग्रेस छोड़कर भाजपा के पाले में खड़े होते हैं तो मोदी-शाह इस नैरेटिव को पहाड़ से लेकर मैदान तक फैलाएंगे कि गांधी परिवार के क़रीबियों की मोहभंग भी अब कांग्रेस से हो रहा है। लेकिन इससे कहीं अधिक नुकसान कांग्रेस को चेहरों की उस सियासत के मोर्चे पर भी होगा जहां उसके पास अब ब्राह्मण चेहरों के नाम पर मंच पर दिखाने को कोई बड़ा चेहरा बचेगा नहीं।

पूर्व सीएम विजय बहुगुणा और सुबोध उनियाल 18 मार्च 2016 को कांग्रेस छोड़कर जा चुके और नेता प्रतिपक्ष रही डॉ इंदिरा ह्रदियेश का निधन हो चुका है। पूर्व विधायक गणेश गोदियाल को हाल में प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी ही गई है लिहाजा उनको चेहरा बनने में अभी वक्त लगेगा और कड़ी मेहनत भी करनी पड़ेगी। प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने किशोर उपाध्याय को आगे किया था जिसके चलते कम से कम गढ़वाल में उसके पास कहने को एक बड़े चेहरे के तौर पर वह बचे थे।


अब अगर किशोर भी पार्टी से रुखसत कर गए तो कांग्रेस के लिए चेहरों की राजनीति और सामाजिक समीकरण साधने की लड़ाई और कठिन हो जाएगी। आखिर धामी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड वापस लेकर ब्राह्मण कार्ड खेल दिया है और जिस तरह दिल्ली से आकर भाजपाई दिग्गज जनरल खंडूरी और निशंक के घर पहुंच रहे यह इसी रास्ते की रणनीति का अहसास कराता है।

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TNA

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