दृष्टिकोण (इंद्रेश मैखुरी): अमिताभ बच्चन के शो- कौन बनेगा करोड़पति का एक वीडियो क्लिप उत्तराखंड में खूब देखी जा रही है। शो में अमिताभ बच्चन हॉटसीट पर बैठे अक्षय कुमार और रोहित शेट्टी से पूछ रहे हैं- इनमें से किस राज्य में वर्ष 2021 में तीन मुख्यमंत्रियों का शासन रहा? यह प्रश्न और इसका उत्तर ही उत्तराखंड के 21 साल की उपलब्धि है। बाकी सब मोर्चों पर हम घिसट-घिसट कर चल रहे हों पर इस मोर्चे पर उत्तराखंड कुलांचे भर रहा है।
उक्त वीडियो क्लिप में यह स्पष्ट होता है कि हॉट सीट पर बैठे अक्षय कुमार तो जवाब के प्रति सशंकित हैं, रोहित शेट्टी भी शंका भाव से ही उत्तराखंड कह रहे हैं। सवाल के जवाब और जवाब के ब्यौरे के बाद अमिताभ बच्चन यह भी बताते हैं कि अक्षय कुमार स्वच्छता अभियान के उत्तराखंड के ब्रांड एम्बेस्डर रहे हैं! इस तरह देखें तो ये 21 साल हमारे ब्रांड के प्रति ब्रांड एम्बेस्डरों और ब्रांड एम्बेस्डरों को बनाने वालों के गाफिल रहने के 21 साल हैं !
और क्या होता है जब ब्रांड एम्बेस्डर को ब्रांड का पता न हो और जिन के हाथों ब्रांड हो, वे उससे बेपरवाह हों, अगर यह समझना हो तो उत्तराखंड को देख कर समझ सकते हैं।
क्या कमाल राज्य है कि मुख्यमंत्री का रोजगार तो जब, तब, कभी भी अनायास ही खुल जाता है, लेकिन बेरोजगारों को रोजगार का दरवाजा खुलने का नाम ही नहीं लेता! इसकी हकीकत खुद सरकारी आंकड़े कर रहे हैं। उत्तराखंड सरकार की 2019-20 की सांख्यिकी डायरी देखिये तो रोजगार की हकीकत खुद-ब-खुद समझ जाएँगे। यह आंकड़ा बताता है कि वर्ष 2019-20 में सेवायोजन कार्यालय में हाई स्कूल से स्नातकोत्तर तक शिक्षा ग्रहण किए हुए 127608 बेरोजगार पंजीकृत थे, उनमें से सेवायोजन विभाग के जरिये रोजगार पाने वालों की संख्या थी महज 27 ! इसी तरह का परिदृश्य अन्य श्रेणियों की नियुक्तियों में भी था।
उत्तराखंड सरकार द्वारा 2018 में प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट कहती है कि 2004-05 के मुक़ाबले 2017 तक आते-आते बेरोजगारी की दर दोगुनी हो चुकी है।
स्वास्थ्य सुविधाओं की लचर हालत की बानगी तो हर दूसरे-तीसरे दिन दिखती रहती है, जब गर्भवती युवतियों के प्रसव प्रक्रिया के दौरान इलाज न मिलने और काल-कवलित होने की खबरें या रास्ते में प्रसव की खबरें आती रहती है। 2018 की मानव विकास रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च महज 1 प्रतिशत है, जबकि आम लोग कुल घरेलू खर्च का 9.4 प्रतिशत स्वास्थ्य संबंधी चीजों पर खर्च करते हैं।
यही स्थिति, यही बदहाली जीवन के हर क्षेत्र में पलायन, राजधानी जैसे सवाल अनसुलझे हैं। पर्वतीय कृषि की बेहतरी की नीतियाँ बनाने के बजाय ज़मीनों की बेरोकटोक बिक्री का कानून पास कर दिया गया। निरंतर आपदाओं के बावजूद विनाशकारी विकास का मॉडल बेखटके जारी है।
राज्य भले ही जर्जर हालत में हो, एक बड़ा हिस्सा उजाड़ और वीरान होने को है पर विज्ञापनों में बड़ी चमक है। शहर के शहर विज्ञापनों से पटे हुए हैं, विज्ञापनी छटा चहुं ओर है। पर विज्ञापन की हरियाली, धरातल पर आज तक कब उतरी जो इस राज्य में उतरेगी !
साभार: एफबी
( लेखक एक्टिविस्ट और सीपीआई (एमएल) के गढ़वाल सचिव हैं। विचार निजी हैं।)