देहरादून: 2014 के बाद से भाजपा ने चुनाव दर चुनाव मोदी के नाम पर उत्तराखंड में कामयाबी हासिल की है। चाहे 2017 का विधानसभा चुनाव रहा हो या फिर 2019 में दोबारा बड़े अंतर से पाँचों लोकसभा सीटों पर फतह हासिल करना रहा हो, पहाड़ में मोदी सूनामी चली और कांग्रेस ताश के पत्तों की तरह ढहती चली गई। अब 22 बैटल का बिगुल बज चुका है और चौदह के बाद चौथी बार भाजपा को मोदी मैजिक का ही सहारा है।
पांच साल सरकार चलाने के बावजूद भाजपा को सबसे ज्यादा आसरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम का ही दिख रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी अक्तूबर में ऋषिकेश एम्स में ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने आए तो दीवाली से एक दिन पहले केदारनाथ धाम पहुंचकर मोदी ने बड़ा चुनावी मैसेज देने का दाव चला। अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा है कि दिसंबर के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री मोदी देवभूमि दौरे पर आएंगे। जाहिर है भाजपा में उत्तराखंड में सबसे ज्यादा डिमांड प्रधानमंत्री मोदी की ही है और दिसंबर दौरे के जरिए मोदी न केवल पहाड़ पॉलिटिक्स का पारा हाई करेंगे बल्कि भाजपा के चुनाव अभियान को भी धार देंगे।
सवाल है कि क्या पिछले तीन चुनावों की तर्ज पर इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी का नाम भाजपा को चुनावी जंग में बढ़त दिला पाएगा? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या जुलाई में युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाते भाजपा नेतृत्व ने जो उम्मीदें पाली थी उन पर वह खरा उतरते दिख रहे हैं? यानी कि जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी के नाम का आसरा भाजपा को है, वैसे ही क्या धामी के कामकाज की धमक से कमल कुनबे के वोट में वृद्धि हो पाएगी? क्या पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में जनता को रुष्ट करने वाले जो-जो काम हुए थे उनके मुकाबले युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कामकाज की नई लकीर और नया नैरेटिव गढ़ने में कामयाब हुए हैं?
जुलाई में सीएम कुर्सी पर क़ाबिज़ होने के बाद युवा धामी ने जनता के बीच सहज सुलभ होने से लेकर संवेदनशील रवैया अपनाकर माहौल बदलने की कोशिश ज़रूर की है। यहाँ तक किपार्टी काडर, पदाधिकारियों और विधायकों में भी सकारात्मक मैसेज देने की कोशिश की है। कार्मिक तबके की नाराजगी दूर करने से लेकर कई तरह के कदम भी उठाए हैं लेकिन आचार संहिता से पहले धामी के सामने पहाड़ सी कई चुनौती आज भी खड़ी हैं।