देहरादून: धामी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड भंग करने का ऐलान कर पहाड़ के परम्परागत भाजपाई वोटर की नाराजगी दूर करने का बड़ा दांव चल दिया है। सवाल है कि क्या युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देवस्थानम बोर्ड भंग कर जो ब्राह्मण कार्ड खेला है, इसका 2022 की चुनावी बैटल में भाजपा को सियासी नफ़ा होगा भी? आखिर अपनी सरकार में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जिस अंदाज में देवस्थानम बोर्ड बनाया और तीर्थ-पुरोहितों तथा हक-हकूकधारियों की नाराजगी दूर करने की बजाय ताकत से विरोध दबाने की कोशिश की गई, उससे भाजपा का परम्परागत वोटबैंक समझा जाने वाला तबका पार्टी से बिदक गया।
कम से कम गुज़रे दो सालों जिस तरह से सड़कों पर पंडा-पुरोहितों ने उतरकर तीव्र संघर्ष छेड़ा उसने भाजपा के रणनीतिकारों की पेशानी पर बल डाल दिया था। इसी का नतीजा है कि सीएम पुष्कर सिंह धामी ने त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में बना देवास्थानम प्रबंधन बोर्ड भंग कर दिया है। दरअसल, तीर्थ पुरोहितों ने धामी सरकार को 30 नवम्बर तक फैसला न होने पर आंदोलन को आक्रामक बनाने की चेतावनी दे दी थी। यहां तक कि तीर्थ-पुरोहितों ने मोदी की चार दिसंबर की देहरादून रैली और फिर शीतकालीन सत्र के विरोध का भी ऐलान कर दिया था।
हालात की नज़ाकत को भांपकर सीएम धामी ने 30 नवंबर की डेडलाइन तय कर देवस्थानम बोर्ड पर बड़ा फैसला लेने का ऐलान किया था। उसी के अनुरूप मनोहर कांत ध्यानी की अगुआई वाली हाई पॉवर कमेटी की रिपोर्ट पर मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता में कैबिनेट सब-कमेटी बनाई गई जिसकी रिपोर्ट आने के चंद घंटे बाद सीएम ने बोर्ड भंग करने का ऐलान कर दिया।
अब जब देवस्थानम बोर्ड वापस लेने का ऐलान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कर दिया है और 9 दिसंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में विधानसभा के रास्ते बोर्ड को सरकार वापस ले लेगी, तब सवाल उठता है कि भाजपा के दो साल पहले देवस्थानम बोर्ड गठित करने और अब ठीक चुनाव से पहले इसे रद्द करने के सियासी मायने क्या हैं? क्या धामी सरकार के टीएसआर राज के फैसले को पलटने की वजह भाजपा की वह चिन्ता है जिसके तहत कहा जा रहा था कि बोर्ड के चलते न केवल तीर्थ-पुरोहित बल्कि ब्राह्मण वोटर्स के बड़े तबके और संत समाज भी नाराज हो गया है? पहाड़ पॉलिटिक्स के लिहाज से तीन जिलों- चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी की अधिकतर विधानसभा सीटों पर तो देवस्थानम बोर्ड पर मचे बवाल का असर पड़ता ही, सूबे के चारधाम सर्किट की ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ तक की कई और सीटों पर भी विपरीत असर पड़ सकता था।
अब कहा जा रहा है कि युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनावी बेला में पार्टी की इसी चिन्ता को दूर करने का दांव चला है। ब्राह्मण कार्ड के जरिए भाजपा बाइस बैटल में परम्परागत वोटबैंक के छिटकने के डर से उबरना चाह रही थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार दिसंबर की देहरादून महारैली से पहले सीएम धामी ने फीलगुड माहौल तैयार करने को यह बड़ा दांव खेला है। देखना होगा क्या ब्राह्मण कार्ड बाइस बैटल में भाजपा को विरोधियों पर फिर इक्कीस साबित होने का मौका देगा!