देहरादून: कांग्रेस के कैंपेन कमांडर और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सियासत के मंझे खिलाड़ी हैं और बखूबी जानते हैं कि अपने राजनीतिक विरोधियों की घेराबंदी के लिए कैसे अपनी पसंद की पिच पर खिलाकर गिल्लियां उड़ाई जाएं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले सात सालों में चुनाव दर चुनाव इस खेल के पक्के खिलाड़ी साबित हुए हैं और पहाड़ पॉलिटिक्स में 2014 के बाद से मोदी लहर बनकर भाजपा की सियासी कश्ती को हर मँझधार पार कराती आई है। 2017 में सत्ता के सिरमौर होकर भी हरदा चुनावी जंग में इसी मोदी सूनामी का शिकार होकर हार गए थे लिहाजा अब बाइस बैटल में हरदा देवभूमि दंगल में पुराने दांव से उलझना नहीं चाह रहे।
यही वजह है कि हरीश रावत अरसे से लगातार बाइस बैटल के पत्ते इस तरह से बिछा रहे कि भाजपा को मोदी लहर का लाभ लेने से रोका जाए और पांच साल में तीन-तीन मुख्यमंत्री देने वाली डबल इंजन सरकार को ‘उत्तराखंडियत के सवाल’ पर कसकर घेरा जाए। इसी अंदाज में हरदा चाहे गैरसैंण में सत्र से पीछे हटने वाली सरकार को इसे ‘उत्तराखंडियत के अपमान’ का मुद्दा बनाकर हमला बोल रहे हों, या फिर चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर हठ छोड़कर यू-टर्न लेने को हार के डर से काँपती सरकार का फैसला करार दे रहे हों। इसी उत्तराखंडियत के हमले को धार देते अब कांग्रेस भू-क़ानून को भाजपा की डबल इंजन सरकार के खिलाफ मजबूत हथियार बनाकर हल्लाबोल करने जा रही है।
जाहिर है पांच साल बाद हाथ लगे हर स्थानीय मुद्दे पर मुखर होकर हरदा डबल इंजन सरकार की ख़ामियों का पोल-खोल कर लड़ाई को मोदी नाम के जरिए भाजपा को राष्ट्रीय फलक पर हाईजैक करने नहीं देना चाह रहे हैं। लेकिन ठीक चुनाव से पहले युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी को फ्रंट फुट पर उतारकर भाजपा बाइस बैटल की बिसात से टीएसआर-1 और टीएसआर-2 की नकारात्मक यादें मोदी नाम के सहारे पहाड़ प्रदेश के मानस पटल से इरेज़ करने की रणनीति पर आगे बढ़ चुकी है। धामी के जरिए भाजपा नई सियासी स्लेट पर चुनावी जीत की पटकथा गढ़ना चाह रही और चुनावी कैंपेन में ड्राइविंग सीट पर हर बार की तरह प्रधानमंत्री मोदी को बिठाकर पार्टी जीत की गंगोत्री बहाने को आतुर है। जमीनी हालात को बखूबी भांपकर ही भाजपा थिकटैंक ने मोदी को आगे कर दिया है और बंगाल बैटल हारकर संघ-भाजपा में बनी उस सहमति जिसके तहत ‘राज्यों के रण में अब मोदी मैजिक का अति इस्तेमाल नहीं किया जाएगा’ को पलटकर बाइस बैटल में जमकर मोदी मंत्र जपकर ही चुनावी जीत का मंत्र तलाशा जाएगा।
मोदी मैजिक के सहारे पहाड़ पॉलिटिक्स में फिर कांग्रेस पर फतह हासिल करना चाह रही भाजपा, ठंड में चुनावी पारा गरमाने को एक-दो नहीं बल्कि सात बड़ी चुनावी रैलियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कराने का खाका खींच चुकी है। पीएम मोदी अक्तूबर में ऋषिकेश एम्स और नवंबर में दिवाली से एक दिन पहले केदारनाथ धाम पहुंच चुके हैं और अब 4 दिसंबर को देहरादून परेड मैदान में महारैली कर मोदी प्रदेश के चुनावी दंगल में भाजपा की हवा बहाने का दांव चलेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री 24 दिसंबर को हल्द्वानी आकर कुमाऊं कुरुक्षेत्र में ताल ठोकेंगे। चुनाव आचार संहिता लगने के बाद मोदी पांच के पांच लोकसभा क्षेत्रों में महारैली कर कांग्रेस और हरदा से दो-दो हाथ करेंगे। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक पहले ही कह चुके हैं कि उत्तराखंड को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का खासा लगाव है और पीएम की सात रैलियों से भाजपा बाइस बैटल जीतेगी।
मोदी चार दिसंबर को देहरादून में करीब 20 हजार करोड़ की सौगात देकर चुनावी जंग को कांग्रेस के लिए कठिन बनाने का दांव खेलेंगे। भाजपा लगातार ‘अटल ने बनाया मोदी संवारेंगे’ का चुनावी नारा बुलंद कर रही है और सारी सियासी पटकथा मोदी और केन्द्र सरकार के इर्द-गिर्द बुनकर राज्य सरकार की कमज़ोरियों और सत्ता विरोधी लहर की दरारों को भरना चाह रही है।
ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या कांग्रेस और हरदा को रणनीति बदलने की जरूरत नहीं है? क्या उत्तराखंडियत के साथ-साथ कांग्रेस और हरीश रावत को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को पहाड़ चढ़ने के लिए आमंत्रित नहीं करना चाहिए! खासकर प्रियंका गांधी जिनके यूपी में ‘लड़की हूँ लड़ सकती हूँ’ नारे और 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने के वादे की हलचल जमीन पर दिख रही है।यूपी बैटल में भले भाजपा को भी प्रियंका की सक्रियता भा रही हो कि इससे अखिलेश यादव के वोटबैंक में ही सेंधमारी होगी लेकिन अगर कांग्रेस प्रियंका का इस्तेमाल उत्तराखंड में भी करती है तो यह भाजपा की बेचैनी बढ़ा सकता है! जाहिर है हरदा लाख चाहें कि लड़ाई उत्तराखंडियत बनाम त्रिवेंद्र-तीरथ-धामी रहे लेकिन लकीर तो मोदी बनाम हरदा की खींचने का मन भाजपा बना चुकी। यकीन न हो तो चार दिसंबर की मोदी गर्जना को पास ही स्थित राजीव भवन में बैठकर कांग्रेस और हरदा सुन सकते हैं।