VIDEO हरक ने चुनाव से पहले ही डाल दिए हथियार: कोटद्वार में सुरेन्द्र सिंह नेगी के सामने चुनाव लड़ने से हार के डर से ‘शेर-ए-गढ़वाल’ मांग रहे सुरक्षित सीट, दूसरों को जिता खुद हारूं इससे अच्छा न लड़ूं चुनाव या पार्टी त्रिवेंद्र की सीट से या यहां से दे टिकट

देहरादून: यूँ तो डॉ हरक सिंह रावत अपने समर्थकों के बीच ‘शेर ए गढ़वाल’ के नाम से जाने जाते हैं लेकिन चुनाव दर चुनाव सीट बदलकर अपनी राजनीति पारी को नई ऑक्सीजन देते आ रहे हरक भाजपा में रहते 22 बैटल में गंभीर सियासी संकट में फंसे नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में रहते सीट बदलकर हर चुनाव में जीत का परचम फहराते आए हरक सिंह रावत अबके कोटद्वार के किले में घिर गए हैं।

सामने हैं कांग्रेस की तरफ से 2012 में ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे के हल्ले के बीच सिटिंग सीएम जनरल बीसी खंडूरी को शिकस्त देकर पार्टी की सरकार का मार्ग प्रशस्त करने वाले सुरेन्द्र सिंह नेगी। वैसे ताकतवर डॉ हरक सिंह रावत भी कम नहीं लेकिन पहाड़ पॉलिटिक्स में अब यह कहावत हो चली है कि जिस सीट की पांच साल नुमाइंदी शेर ए गढ़वाल कर लेते हैं फिर वहाँ पलटकर दोबारा जीतना उनके लिए तो छोड़िए उनकी पार्टी के किसी दूसरे प्रत्याशी के लिए भी जीतना आसान नहीं रहता। मसलन 2012 में डॉ हरक अपने साढ़ू भाई मातबर सिंह कंडारी को हराकर रुद्रप्रयाग के विधायक बने, कांग्रेस सरकार में ताकतवर मंत्री भी रहे लेकिन 2017 में खुद तो भाजपा के टिकट पर कोटद्वार से जीतकर आ गए लेकिन कांग्रेस रुद्रप्रयाग भी हार गई।

अब डॉ हरक कोटद्वार की विधायकी के पांच साल पूरे कर रहे हैं लिहाजा तय है कि विधानसभा पहुंचना है तो नई और सुरक्षित सीट की सख्त दरकार है। इसीलिए लगातार नाराजगी के संकेत भी देते आ रहे लेकिन प्रचंड बहुमत वाली भाजपा है कि जिस मांग पर शेर ए गढ़वाल रूठते हैं उस पर झट सरेंडर मोड में आकर मान ले रही। इसी का नतीजा है कि न घरवापसी के दरवाजे नजर आ रहे और न भाजपा कोटद्वार से कहीं और जाने देने पर राज़ी हो रही। वैसे कद्दावर नेता हैं लिहाजा सीधे सीधे पार्टी आलाकमान को कैसे कह दें कि कोटद्वार के किले में जीत दूर-दूर तक नहीं दिख रही!

अब जब 25 करोड़ मंजूर कर सीएम पुषकर सिंह धामी ने कोटद्वार मेडिकल कॉलेज के नाम पर रूठने का बहाना भी छीन लिया तो ‘शेर ए गढ़वाल’ ने सीधे सरेंडर करना ही मुनासिब समझा और मीडिया के सामने इसका ऐलान भी कर दिया। ऐसे समय जब भाजपा ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तथा प्रदेश नेताओं के रूप में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को ही पोस्टरों में जगह देने का नीतिगत फैसला कर लिया है, तब डॉ हरक चाहते हैं कि वे कोटद्वार से चुनाव न लड़कर पार्टी को दूसरी सीटों पर जीत दिलाएँगे। लेकिन अगर भाजपा नेतृत्व उनको चुनाव लड़ाना ही चाहता है तो फिर ‘कोटद्वार जहां उन्होंने विकास की झड़ी लगाई है’ वहाँ कि बजाय लैंसडौन, यमकेश्वर, डोईवाला या फिर केदारनाथ से चुनाव लड़ाए। अब केदारनाथ में तो कांग्रेस विधायक हैं लेकिन बाकी तीन सीटों के भाजपाई विधायकों को हारा हुआ मानकर मानो शेर ए गढ़वाल पार्टी को एक सीट जीतकर देना चाह रहे।

डॉ रावत ने कहा है कि उन्होंने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और चुनाव प्रभारी केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी से निवेदन भी किया है कि इस बार उनको चुनाव न लड़ाया जाए तो ज्यादा बेहतर है। इसके पीछे उनका तर्क भी है कि स्वाभाविक है कि जब कोई चुनाव लड़ता है तो वह अपनी सीट पर ज्यादा फोकस करता है, ऐसा नहीं हो सकता कि वह खुद हार जाए और दूसरों को जिताए। लेकिन अगर पार्टी को चुनाव लड़ाना ही तो डोईवाला, केदारनाथ, लैंसडौन या यमकेश्वर से लड़ा दिया जाए।

बहरहाल, अपनी सीट से चुनाव न लड़ने के फैसले के पीछे सियासी वजहें जो भी हो लेकिन कल्पना करिए अगर डबल इंजन सरकार के हरक सिंह रावत जैसे कद्दावर मंत्रियों का ये हाल है कि ‘पांच साल विकास की गंगा बहाने’ के बावजूद अब अगर ठीक चुनाव से पहले अपनी ही सीट छोड़ने की नौबत आन खड़ी हो रही तो इसे पार्टी का संकट कहा जाए या फिर जमीनी नेता के जमीन से उखड़ने का संकेत माना जाए! वैसे THE NEWS ADDA के पास पुख़्ता जानकारी है कि हरक सिंह रावत अकेले ऐसे जमीनी नेता नहीं जिनको चुनाव में सिटिंग सीट से लड़े तो जमीन खिसकने की चिन्ता सता रही बल्कि एक दो और दिग्गज भी हैं जो पांच साल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए रहे लेकिन अब चुनाव सामने देखकर सीट छोड़ें कि परिवार से किसी और को चुनावी ताल ठोकने को आगे कर हार से पीछा छुड़ाने की तरकीबें तलाश रहे हैं।


वैसे डॉ हरक सिंह रावत के लिए चिन्ता चुनावी हार के डर तक सीमित नहीं बल्कि भाजपा गए कांग्रेसी गोत्र के नेताओं का ओके डर यह भी है कि अगर हार ही गए तो पार्टी में जगह कहां नसीब होगी! आखिर भाजपा नेतृत्व ने त्रिवेंद्र सिंह रावत से तीरथ सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी तक सत्ता की चाबी सौंपते दीवार पर साफ पटकथा लिख दी है कि उसे किस तरह के खास चेहरों के ही को ही नेतृत्व सौंपना है और मजबूत संगठन के बूते किसी भी तथाकथित कद्दावर को अर्श से फर्श पर लाने में पार्टी को जरा भी परहेज नहीं होगा।

फिलहाल तो रावत की रावत से होटल वाली गुफ़्तगू पर हल्ला मचा रहा!

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TNA

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