क्या दलित नेता आर्य पर पांडे की टिप्पणी उनकी जातीय श्रेष्ठता और दलितों को हीन समझने की सोच का परिचायक नहीं?
हल्द्वानी/देहरादून: विधानसभा चुनाव करीब हैं लिहाजा सत्तापक्ष और विपक्षी नेताओं में जुबानी जंग तीखी होना स्वाभाविक है। लेकिन जब जुबानी जंग बदज़ुबानी में बदल जाए तो कई तरह के सवाल खड़े होते हैं और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बावजूद लोकतांत्रिक बहस में इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। कुछ समय पहले भाजपा और धामी सरकार छोड़कर कांग्रेस में घर वापसी कर गए दलित नेता यशपाल आर्य और कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे में कुछ दिनों से जुबानी जंग छिड़ी हुई है। हाल में बाजपुर में यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य के क़ाफ़िले पर हुए हमले के बाद कांग्रेस नेता ने इस हमले के लिए शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे को ज़िम्मेदार ठहराया था। अब शिक्षा मंत्री ने पलटवार किया है लेकिन विवादित बयान देकर जवाब दिया है।
हल्द्वानी में मीडिया से रूबरू होते शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे एक सवाल के जवाब में कहते हैं,
‘यशपाल आर्य हमारे बड़े भाई हैं, हमारे प्रदेश के बड़े नेता हैं। अफ़सोस सिर्फ इस बात का है कि गिद्ध कितना भी ऊपर चला जाए लेकिन उसकी नजर हमेशा सड़े-गले मीट पर ही होती है।’
इसके बाद सामने से उपस्थित मीडियाकर्मियों के ठहाका मारने की आवाज सुनाई देती है।
अरविंद पांडे आगे कहते हैं कि उनको यशपाल आर्य का आरोप सुनकर बड़ा अफ़सोस हुआ है क्योंकि राजनीतिक में कभी भी आदमी को इतने घटियापन पर नहीं आना चाहिए। हमारे बड़े भाई हैं उन्होंने बड़े-बड़े दायित्व संभाले हैं लेकिन जिन लोगों ने भी इस घटना को अंजाम दिया है ये खुद आर्य के पाले पाप हैं।
सुनिए हल्द्वानी में अपने विवादित बयान में क्या कहा शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने
सवाल है कि आखिर सूबे के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे को उसके पूर्व कैबिनेट सहयोगी यशपाल आर्य ‘गिद्ध’ क्यों नजर आ रहे हैं?
क्या इसलिए कि यशपाल आर्य सूबे के दलित नेता हैं और राज्य बनने के बाद तिवारी सरकार में विधानसभा अध्यक्ष, कांग्रेस के सात साल तक प्रदेश अध्यक्ष और बहुगुणा से हरदा सरकार में मंत्री रहने के बाद 2017 में भाजपा सरकार में भी कद्दावर मंत्री रहे। लेकिन इन तमाम सियासी दायित्व संभालने के बावजूद चूँकि वे एक दलित हैं लिहाजा उनकी तुलना गिद्ध और गले-सड़े मीट से करने का शाश्वत और स्वाभाविक अधिकार अरविंद पांडे को मिल जाता है?
या फिर एक सवर्ण नेता-मंत्री होने के नाते उनको आर्य की सियासी ऊँचाइयाँ इतनी नाकाबिल-ए-बर्दाश्त गुजर रही कि वे उनको गिद्ध सिद्ध कर सड़े-गले मीट का इशारा कर उनकी असल हैसियत बतला देना चाह रहे?
अलबत्ता अरविंद पांडे को यशपाल आर्य के दलबदल से तो उनकी दिक्कत नहीं ही होगी! क्योंकि पिछले चुनाव में भी खूब दलबदल हुआ था और इस चुनाव में भी कांग्रेस-भाजपा खूब दलबदल कराने को पसीना बहा रही! और अगर आर्य के दलबदल से पांडे खीज गए हैं तब तो उनको यह शिकायत पूर्व सीएम विजय बहुगुणा से लेकर हरक सिंह रावत और ऐसे तमाम नेताओं से भी होगी! लेकिन शायद यह मसला नहीं है!
मसला जातीय श्रेष्ठता के गर्व से फूटती सोच का है जो अरविंद पांडे जैसे नेताओं को किसी दलित पर जुबानी हमला करते ‘गिद्ध की सड़े-गले मीट पर नजर’ जैसे जुमले से समाज के भीतर अंदर तक समाई सड़ांध को बाहर निकालने का अवसर दे देती है। वैसे यह तो अब भाजपा नेतृत्व पर है कि वह अरविंद पांडे के गिद्ध बयान को सही सिद्ध करती है या उससे कोई जवाब माँगने की ज़हमत भी उठाती है!